समल चित् -समान है/प्रीतिरूपी मालिकी/ हिंद प्रीति-गान बन
(1)
समल चित् -समान है
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सजगताभिमान है।
सुबुधि गह महान है।
भाव बिन सदैव नर।
समल चित्-समान है।
चित्=चित्त
(2)
प्रीतिरूपी मालिकी
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ईश-पथ का जाम पी,
बनो ज्ञान -पालकी।
मिलेगी सहज सुबुद्धि-
प्रीतिरूपी मालिकी।
(3)
हिंद-प्रीति-गान बन
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जनम भूमि मान बन।
अहं–छोड़, ध्यान बन।
“नायक” सुदिव्य-विज्ञ,
हिंद-प्रीति-गान बन।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता