भौतिकवादी
भौतिकवादी का भँवर,फँसा हुआ संसार।
इसके मायाजाल से,कैसे पाये पार।।
भौतिकता की दौड़ में,अंधा है इंसान।
चकाचौंध में झूलता,मान और सम्मान।।
नीति-न्याय ईमान का,हुआ निरंतर ह्रास।
शिथिल हो गई आस्था,और घटा विश्वास।।
करो मौज खाओ पियो, भौतिकता-व्यामोह।
बढ़ा कलह परिवार में,आत्महत्या विछोह।।
ईर्ष्या-द्वेष छल-कपट,अतृप्त व्यग्र अशांत।
चुभन लिए भटकाव की, बच्चे हैं आक्रांत।।
रोग-शोक से हैं भरे,मन में तुच्छ-विचार।
बचा नहीं है लोग में, मर्यादा-संस्कार।।
धर्म-कर्म से लुप्त है,भौतिकता उन्माद।
मूल लक्ष्य को त्याग कर,करते वाद- विवाद।।
प्रतिरोधात्मक त्याज्य है,ये भौतिकतावाद।
जिसने जीवन में भरा, बहुत अधिक अवसाद।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली