भोली माँ
मेरी कलम से…
मेरी माँ भी ना
कितनी भोली है
अब भी कहती है
बेटा बाल्टीभर
पानी मत उठाओ
हाथ थक जायेगा
आधा ही पानी भर जाये
तो ही उठाया करो
पर माँ
मैं इतना नादान भी नही
जानता हूँ मैं
उस आधे जल पात्र में
भरना चाहती हो
अपनी ममता को
आशीर्वाद को
विशाल मन को
मातृभाव को
माँ मैं
तुम्हारी चालाकियां
समझ चुका हूँ अब
इसलिए तो मैं किसी
बहाने से डुबो देता हूँ
तुम्हारे आँचल का
एक कोना
ताकि
साधारण सा पानी भी
तृप्त हो जाये
घुल जाये उस में
अदृश्य प्रेम
और बन जाये निर्मल गंगा
इस अमृतजल में
लगा लूँ डुबकी
कर लूँ
हर की पौड़ी का दर्शन
तब
मोक्ष को प्राप्त हो जाऊँगा
ईश्वर
आस्था
दिव्य प्रेम
ये सब तुम ही तो
हो माँ!!!!
©चंदन सोनी