भोला बचपन
सुनो,
क्या आपने पहचाना मुझे?
अरे भाई! मैं हूं भोला-मस्तमोला बचपन।
खेल रहा है भोला बचपन,रोज नए अहसासों से,
मन में उमंग भरने वाले, शरारती आभासों से।
बारिश में , सर्दी- गर्मी में ,अल्हडता बनी रहती है।
चंचल चपल तनावमुक्त, मुझको दुनिया कहती है।
कहीं मिल नहीं रहा जो आपको।
मैं वही छोटी छोटी खुशियों से भरा झोला बचपन।
बेपरवाह निश्छल सा मैं हूं भोला-मस्तमोला बचपन।
हर खेल में साथी बनाकर, रिश्ता नया बनाता बचपन।
हंसकर खिलखिला कर, फ़िक्र को धूंए में उड़ाता बचपन
नहीं द्वेश झूठ का पैमाना बस हंसने का बहाना बचपन।
क्यों हो गए आप इतने बड़े,बना यादों का ज़माना बचपन
दुनिया के सब झूठ, फरेब से होता है बेगाना बचपन।
मनमौजी दिवाना बचपन,मां का प्यारा,पिता दुलारा प्रबल
उत्सुकता संग ऊर्जा विहल्ल जिद्दी हठीला बचपन।
प्यारा बचपन न्यारा बचपन, होता रंग रंगीला बचपन।
उम्र साठ हो या फिर पचपन, लगता सभी को प्यारा बचपन।
नीलम शर्मा