भोर
भोर (कविता)
भोर कितनी प्यासी है,
जो हर सुबह मिलने के लिए
बेचैन सी आ जाती है।
साथ ही साथ मे लाती है,
आलसपन को दूर करने का लेप।
शाख की ओस की तरह
मन को शीतलता प्रदान करती है।
उसके ही पीछे लग आता
सूरज की लालिमा।
जैसे कोई गहरे प्रेम का रिश्ता
निभा रहा हो संग रहकर।
भोर के कोमल हवाओं में
असंख्य बीमारी से लड़ने की
ताकत समाहित है।
नित्य प्रातःकाल रोम-रोम
से परिचय करती है।
कौन है? जो बिन बुलाये
मेहमान की तरह आ जाता है।
आओ इसे पहचाने,
भोर को जाने।
Rishikant Rao Shikhare
25-06-2019