*”भोर सुहानी आएगी”*
“भोर सुहानी आएगी”
समय का ये कालचक्र निरन्तर चलता रहता।
कभी अमावस की कालिमा छाई हुई कभी पूनम की चाँदनी खिल उठेगी।
दिन हो या रात हो लंबे अंतराल के बाद ही ,
स्वर्णिम आभा की नई किरणें उम्मीद जगाएगी।
वो भोर सुहानी आएगी…! !
संघर्षो से जूझते हुए थक हारकर
विध्न बाधाओं को दूरकर ,
मुश्किलों से निकलकर ,
सामने आई विकट समस्या का सामना करते हुए ,
समझदारी से हिम्मत से काम ले ,
एकजुटता हौसला बढ़ाते हुए,
चेहरों पर खुशियां जरूर लाएगी।
वो भोर सुहानी आएगी…! !
ऋतु परिवर्तन से उजड़ा चमन
सूखी पत्तियों का गिरना झड़ना
नई कोपलें पल्लव कुसुमित
सुगंध बिखरते बगिया महकती
पँछी के मधुर स्वर कानों में रस घोल उदासी चेहरों पर मुस्कान ले आएगी।
वो भोर सुहानी आएगी….! !
अखंडता में एकता समर्पण भाव
पराजय से विजय पथ प्रदर्शक
दृढ़ इच्छाशक्ति विश्वास उम्मीद की किरणें दिखलाएगी।
कुदरत में जहरीली गैस घुल गई
प्रकृति को जो हमने दिया
शुद्ध हवाओं प्रदूषण रहित
अब प्रकृति पुनः हमें लौटाएगी।
वो भोर सुहानी आएगी…! !
जन्म मरण मायामोह का बंधन
उम्र का लेखा जोखा विधि विधान
होनी अनहोनी होकर रहेगी।
प्रेम आस्था दृढ़ संकल्प सेवाभाव
पीढ़ी दर पीढ़ी नई चेतना जगाएगी।
वो भोर सुहानी आएगी….! !
गुजर जाएगी ये अमावस की रात
नाजुक हालत संकट की घड़ी में
जीत का जज्बा हौसला लिए हुये
फैलेगा चहुं ओर नूतन प्रकाश
आशाओं का दीप जलाकर
सूरज की रोशनी फैलाएगी।
वो भोर सुहानी आएगी….! !
वो भोर सुहानी एक दिन जरूर आएगी…..! ! !
शशिकला व्यास✍️