भोर समय में
आज सभी को भोर समय में, हमें जगाना है।
सभी के मन में न उठने का, एक बहाना है।
फूल खिले हैं देख लीजिए, कलियां मुस्काई।
साथ सभी को आगे बढ़कर, अब मुस्काना है।
बंद पड़ी मन की आंखों को, धीरे से खोलें।
इनमें सुंदर सी छवियों को, सहज समाना है।
आस पास का कोना कोई, रहे नहीं सूना।
हर्ष भाव से साथ सभी के, पर्व मनाना है।
बासंती ऋतु की बेला है, मस्त सभी के मन।
फूलों को प्रकृति का आंगन, खूब सजाना है।
खुले हृदय से नित्य बहाएं, स्नेह भरी गंगा।
बेमतलब की हर शंका को, शीघ्र हटाना है।
एक स्थान पर बैठे बैठे, काम नहीं होता।
आगे बढ़कर हमें सभी से, हाथ मिलाना है।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य