भोर में उगा हुआ
भोर में उगा हुआ
किन्तु पहले वो कली है
खिला नहीं!
खिलने को है।
पर तुल्य देखें___
स्त्री का शरीर
कई दर्पण है!
जो पुरुष उसे रोज देखता है
फिर अपने को देखता है
और स्वयं को ढूंढ़ता है
प्रतिच्छाया बनने।
जननी, सहोदरी या सह नहीं
सहचरी लिए या अन्य स्त्री
क्योंकि शरीर की भूख है
ख्वाबों में, कल्पनाओं में…।
एक, दो देह मेल को पाता
किन्तु यथार्थ में नहीं तो
ख़ुद को कोसता है
भावनाओं को दबाकर
स्वप्न में, मस्तिष्क में
ब्लूप्रिंट बनाता है।
पाणिग्रहण नहीं होने या होने
के बाद __
दायित्व संभालने
दो देह वर्णन को
वासना लिप्त, आलिंगनबद्ध, रतिक्रम के फूल
गर्भमास के बाद
– जैसा ही खिलता
एक फूल!
भोर का।