भोर की खामोशियां कुछ कह रही है।
भोर की खामोशियां कुछ कह रही है।
बिन कहे शीतल हवा भी बह रही है।
ओस भी चुपचाप टपकी जा रही जब।
कालिमा की सब दीवारें ढह रही है।
~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/११/२०२३
भोर की खामोशियां कुछ कह रही है।
बिन कहे शीतल हवा भी बह रही है।
ओस भी चुपचाप टपकी जा रही जब।
कालिमा की सब दीवारें ढह रही है।
~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/११/२०२३