भोर का सूरज
उषा की किरणों से कुसुमित,
भोर का यह सूरज देखो,
कलरव करते खग विहंग का,
प्रेम पगा आलिंगन देखो…
रक्ताभ लालिमा लिए हुये,
कितनी दूर क्षितिज फैला है,
मेघों से व्योम अलंकृत हो,
कांतिमान और गर्वीला है…
जो स्वप्न निशा मे देखें हैं,
उनका यहाँ सृजन देखो,
वातायन से बहती आती,
मंद पवन की ऊर्मि देखो…
चैतन्य धरा नभ जाग्रत है अब,
प्रकृति का किल्लोल तो देखो,
उठ कर बैठो अब खाट से तुम,
अंतर्मन मे अब झांक के देखो….
© विवेक’वारिद’*