भोर का दृश्य
गीतिका
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निखरता हुआ भोर का दृश्य सुन्दर।
किरण स्वर्णमय रह न पाती सिमटकर।
बहुत चाह आगोश में आज ले लूं।
रुके बिन उसे देख लूं आज जी भर।
पुकारूं किसे मैं बहुत दूर हो तुम।
मिलेगा कभी इस तरह फिर न अवसर।
अहर्निश यही सिलसिला जब चला है।
खिली भोर में है सताता कहां डर।
बहुत शांत तट सिंधु का खूबसूरत।
हुए जा रहे भाव मन के उजागर।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य,२६ /०६/२०२४