भोजपुरी भाषा
संस्कृत शाखा से उद्घृत आर्यवर्त की प्रिय भाषा भोजपुरी जो कई देश की राष्ट्र भाषा बन गई है, वह आज भी अपने घर में एक राज भाषा का दर्जा नहीं प्राप्त कर पाई है, कहावत है घर की मुर्गी साग बराबर।
भारत देश में सभी राज्यों में अपनी एक भाषा है जो अपने क्षेत्र वासियों को सबसे प्रिय लगता है, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी लिखते हैं मम भाषा उन्नति अहै, मम भाषा को मोल, अपनी भाषा की उन्नति सभी चाहते हैं, अपनी भाषा सबको अनमोल लगता है।
भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा बंगाली है, हिंदी, उर्दू, मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगू, फारसी, कन्नड़, मलयालम, कोंकणी, पंजाबी, राजस्थानी, इत्यादि भाषाएं बोली जाती है, भारतीय संविधान में बाईस राज्य भाषाओं को मान्यता प्राप्त है, इसमें अंग्रेजी समाहित है।
भारतीयों को एक माला में पिरोने का कार्य तो हिंदी ही करती है, हिंदी सभी को एक माला में पिरो के रखती है।
आप सबको ले चलते हैं, भाषा भोजपुरी के उत्थान में अवरोधक और बाधक उद्योग सोसल मीडिया है, जो आज एक विस्तृत छाया हुआ है।
भोजपुरी भाषा बिहार के पश्चिम में आरा शाहाबाद जिला में नवका भोजपुरी पुरनका भोजपुरी से प्रचलित हुई है, पूर्वी उत्तर प्रदेश में अधिकारी रूप से हिंदी की एक उप भाषा या बोली है।
पूर्वी यूपी एवम् पश्चिम बिहार के जनता जो अपना जीवन यापन हेतु अपनी मातृ भूमि छोड़ जाते हैं, वहां यही कहा जाता है, कि यूपी बिहार से आ गए, भोजपुरी भाषा का मजाक उड़ाते हैं, कोई दूसरा नहीं हम आप जैसे लोग जो लोलूप अमानवी और आसामाजिक विचार धाराओं वाले मनुष्य सोशल मीडिया ने आज भोजपुरी भाषा के उत्थान में सबसे बड़ा बाधक है, भोजपुरी फिल्म अभिनेताओं को सुपरस्टार अभिनेत्रियों को जुबली स्टार पॉपुलर स्टार तक कहते है, मैं इन्हें स्पष्ट भाषा में कहना चाहता हूं, जो अपने भाषा के उत्थान संस्कृतिक से खेलता है, वह स्टार नहीं है, दलाल है, वेश्या है, खुद को गाली देता है और स्वयं को भोजपुरी भाषा के सिंहासन पर आरोपित महाराजा कहता है, प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होता है, उदाहरण आज सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से प्रसारित हो रहा है।
सेशन बोर्ड भी पैसे हेतु ऐसे गीत पारित कर देता है, ऐसे गीतों के क्रम कुछ निम्नवत है
आज भर ढील दा, ढोढी जनि छिल दा
हमरे गन्ना के रस, तोहरे ढोरी में सही सही जाता कि ना बरफ के पानी, रगड़त बानी, राजा जी अपने चीज में
कुवारे में गंगा, नहइले बानी
लहंगा में हमरा ब्लूटूथ
अभी ले महके कडूवा तेल
दिया बुता के, पिया क्या-क्या किया
इत्यादि अश्लीलता से भरे गाने लिखने वाले लेखक जो स्वयं अपने को एक सर्वश्रेष्ठ लेखक समझते हैं, कि हम भोजपुरी में महारत हासिल कर लिया है, वह अपने को नहीं भोजपुरी भाषा को एक गर्त में डाल रहे हैं, भोजपुरी को एक अंतरिम ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर विदेशिया में ऐसे मार्मिक चित्रण गीत प्रस्तुत किया है, की पश्चिम बंगाल में उनका विदेशिया नाटक गीत को अंग्रेज़ी हुकूमत ने बंद करवा दिया गया, आज विदेशी व्यक्ति भोजपुरी गीत या फिल्म देखकर ग्रामीण अपने क्षेत्र जाने को नहीं सोचेंगे, क्योंकि वह भाव, चित्रण, प्रकृति, आलिंगन, इत्यादि उपस्थित नहीं रहता है, वह वैश्या वृत्त के गोद में जा कर गिर रखा है।
मालिनी अवस्थी जी जो भोजपुरी में अनेक गीत गाए
सईया मिले लड़कइया मैं का करों
रेलिया बैरन, पिया को लिए जाए रे
सोनवा के पिजरा में बंद भईल हाय राम
चिरई के जीउवा उदास भईल
टूट गईल डरिया, ऊजड़ गईल खोतना
गोर की पतर की रे, मारे गुलेलवा तानि
जगत रहिया भईया
काहे बसुरिया बजऊला
नरगिस की मां चंदन बाई बनारस की रहने वाली नृत्य पारंगत थी, उन्होंने हिंदी फिल्म तकदीर में १९४३ ई. में एक भोजपुरी ठुमरी रखवाया था, पहली बार इन्होंने ही भोजपुरी फिल्म बनाने का सोचा था, लेकिन इनका सपना सपना ही रह गया।
१९६० ई. में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी ने नासिर हुसैन साहब से भोजपुरी फिल्म बनने का आग्रह किया, १९६२ ई. में पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे चुनरी चढ़ाईब रिलीज किया गया, जिसमे रफ़ी साहब जी गीत को अपना आवाज़ दिया, १९६५ ई. में आनंद बजार पत्रिका भवन में आयोजित हुआ, जिसमे सर्व श्रेष्ठ गायक मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले जी को पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
१९७९ ई. में बलम परदेसी राकेश पाण्डेय जी द्वारा प्रस्तुति फिल्म जिसने भोजपुरी ही नहीं पूरे हिंदुस्तान में चर्चा में रहीं, इस फिल्म के मशहूर गीत निम्न है- गोर कि पतर की रे, जगत रहिया भईया
गंगा मैया तोहे चुनरी चढ़ाईब के बाद तो भोजपुरी फिल्म बनाने की होड़ सी लग गया, गोदान फिल्म में पिपरा के पतवा सरेखा डोले मनवा, नैहर छूट जाए रे – जियरा कसक मसक करेला, हमार संसार में फूलवा नियर नार सुकुमार, बिधना नाच नचावे में गोरे तोर नैना चैन चुरवले, सोलहो श्रृंगार, विदेशिया फिल्म में निक सईयां बीन भवनवा नहीं लागे सखियां, इतनी मीठी पारंपरिक प्रस्तुति बोल से मन तक नहीं भरता है।
भोजपुरी सिनेमा में कल्पना पटवारी, प्रियंका सिंह, इत्यादि गायिका ने भोजपुरी भाषा को एक नई दिशा में ले जाने का अथक परिश्रम कर बुलंदियों को छूआ है, सांसद मनोज तिवारी, रवि किशन, और दिनेश लाल यादव निरहुआ इत्यादि कलाकारों ने भोजपुरी जगत में अपने कदम विस्तृत किया है
विदेशों में यही भोजपुरी अंतरिम ऊंचाइयों पर पहुंच गई है, तो भारतीय भोजपुरी सिनेमा जगत में जगह-जगह बिना पंजीकरण कराए स्टूडियो खोलकर मनमाने ढंग से अश्लीलता का बाजार बढ़ाए जा रहे हैं, इसमें पुरुष ही नहीं अपितु स्त्री अभिनेत्री भी अपने को पर्दा से परे कर एक वैश्या चल चित्र लोकार्पण का परखी अभिनेत्री घोषित कर दिया है।
स्टेज शो भी करती हैं तो वहीं विदेशी वस्त्रों से सजे अर्ध नग्न आती है, फिर कहती हैं, कि भोजपुरी के लोग खराब है, देशी संस्कृति में देश की मिट्टी के प्रसाद ग्रामीण छवि सरोवर पक डंडी, ग्रामीण समावेश दिखाया जाए तो यह अश्लिलता पारखी दर्शिता बंद हो पाएगा, नहीं तो कभी भी नहीं, यूपी बिहार का सपना सपना ही रह कर दम तोड़ देगा कि भोजपुरी एक राज्य भाषा का दर्जा संविधान में प्राप्त कर सके।
नए परौधों में मैंने भोजपुरी को एक संस्कृति भाषा को एक अंतरिम जन मानस तक प्रस्तुति करते हुए गायिका सुश्री अंजली यादव, और श्री क्षमा पाण्डेय जी को एक अंतरिम रास्ते पर ले चल रहीं हैं, अंजली जी का गीत, भोजपुरी भाषा के बचाई, स्वर्ग से सुंदर आपन गांव, कहा कहा दाग लागी, जिंदगानिया कवना राही जाई, आई ना पिया, दुल्हन बन के आईल रहीं, जय जवान जय किसान, कसम प्यार के हम निभा नाही पईंनी, कजरा लगाईब काहे के, सईयां बाड़े रूसल इत्यादि भोजपुरी गीत गाई है, और क्षमा पाण्डेय जी जा ए कागा गीत ने उन्हें एक विशिष्ट पहचान प्रदान किया, सोनू तिवारी (मुसाफिर जौनपुरी) का एक गीत जमूरा जो ग्रामीण अंचल से सजा सौंदर्य से पूर्ण काफी प्रभावित किया।
भोजपुरी जगत के बहुत से ऐसे नए परौधें है, जिन्हें संगीत का ज्ञान नहीं वह भी गायक लेखक बनकर भोजपुरी भाषा को तोड़ मरोड़ कर दूसरे का नकल करके गीत लिख रहे है, और अश्लीलता पर ला बेचते है।
संगीत वह कैसा जिसमे उपमा, अलंकार, छंद, रस लेशमात्र भी नहीं प्रस्तुति नहीं होता है, गीत तुक बंद पर लिख देते है, एक जीवन्त अर्ध मरा प्राण प्रतिष्ठा कर प्रस्तुत कर देते हैं, अश्लीलता भरे गीतों में पश्चिमी देशों का रंग रंग डाल कर समाज में एक अलग ही दूर व्यवस्था पैदा कर रहे हैं, ऐसे गीत जिन्हें परिवार के साथ में बैठकर ना देखा जा सकता है, ना सुना जा सकता है।
इससे पूर्व भी भिखारी ठाकुर, गोपाल राय, महेन्द्र मिश्र, भरत शर्मा जी इत्यादि लेखकों ने भोजपुरी रूपरेखा में इत्यादि गीत नाटक लिखे जो ऐसे मार्मिक रूप रेखा में प्रस्तुत हुए कि भोजपुरी आंचल में अमर हो मानव हृदय में जीवांत हो गए।
आज के परौधे तो इस आंचल पर कालिख के दाग लगा लगा कर भाषा समाज को बदनाम कर रहे हैं, कहते हैं कि पब्लिक का मांग हैं।
समाज में क्या उनके घर की बहन बेटी नहीं है, वह भी तो वही अर्ध – नग्न बनकर सोशल मीडिया पर सिनेमा घरों में अर्ध नग्न हो धन कमा रही हैं।
अब मंच कार्यक्रम नहीं स्टेज शो होता है, जिससे अर्ध नग्न व्यापार होता है, जिससे धन कमाया जाता है, जिसे डांस कहा जाता है, नृत्य वह कला है, जो किसी को उपहार में नहीं अपितु साधना से प्राप्त होता है, नृत्य तो वह कत्थक, ओडिशा, कुचिपुड़ी, मोहनीअट्टम, मणिपुरी (भरत नाट्यम) है
मुझे पलसाना गुजरात की घटना आज भी याद है, वह स्टेज शो जिसपर अर्ध – नग्न डांसर के ऊपर धन की देवी की वर्षा किया जाता है, जिससे वह प्रसन्न होती है, उनके और उनके सहयोगियों के द्वारा पैरों के नीचे नोट कुचला जाता है, लक्ष्मी को पैरों से कुचलता देखकर, मन द्रवित सा हो गया, ग्रामीण भोजपुरी आंचल में झाड़ू को भी पैरों से नहीं छुआ जाता है, वही भोजपुरी मंच पर, मंच कहने में भी शर्म आ जाता है, स्टेज शो ही ऐसे अश्लीलता भरे गीतों को शोभा प्रदान करता है, अपनी संस्कृतियों को भूलने वाले आज धन के देवी को भी पैरों से कुचल रहे हैं, यह यथार्थ की भोजपुरी भाषा आज इतने निचले स्तर पर आ लटकी है, यह अश्लील भरे गीत जिन्हें ना निगला जा सकता है, ना उगला जा सकता है, सर्फ के केचुल के भांति पीड़ा दायक कैंसर है, यह अश्लील गीत भोजपुरी भाषा हेतु वह रोग है, इस के उत्थान में जब तक अश्लील गीतों चल – चित्रों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा एवं पुराने ग्रामीण अंचलों पर कार्य नहीं किया जाएगा, तब तक भोजपुरी एक भवर में ही फंसी की फंसी रहेगी।
भोजपुरी भाषा उत्थान और इसके श्रृंगार हेतु इसे ग्रामीण पक डंडियों से गुजर कर जाने पर ही प्राचीन संस्कृतियों को ध्यान में रखते हुए, नव जागरण उत्थान हेतु भोजपुरी भाषा में वह क्रांति लानी होगी, जिससे अपनी भाषा भोजपुरी को भी संवैधानिक दर्जा प्राप्त हो।
भोजपुरी के प्रचार प्रसार उत्थान हेतु, अनेक पत्रिका प्रकाशन लगे हुए है, हिंदुस्तान ही नहीं विदेशों में भी भोजपुरी भाषा हेतु प्रयास जारी है।
भोजपुरी एक मीठी भाषा, मेरे लिए अनमोल
जीवन के इस गहराई में, मिलकर लो तुम तौल
मुहावरों से सजे हुए हुए है, इसके मुखरित बोल
विदेशों तक फैला हुआ है, मधुरम बोलों के मोल
बड़े बुजुर्ग कह गए है, पढ़िया लिखिहा कऊनों भाषा, बति अईहा भोजपुरी में।
भोजपुरी की मिट्टी भी चंदन है
इसका सौ सौ बार अभिनंदन है
जय हिंद के बोली का गूंजे नारा है
अपना भारत देश सभी से प्यारा है