भोग भी एक रोग
भोग बना रोग
नहीं ये संयोग,
मर्ज खरा स्पष्ट,
डरते रहे लोग.
.
अंधकार गहरे
दिन नहीं स्पष्ट
बाहर है तमस्
शयन के उत्सुक
.
भूल गये भूख
ये प्रकृति है,
नियम है स्पष्ट,
छोड़ छल कपट,
.
दिन भी रात है.
हर तरफ रात ही रात
जब तक तू स्वयं
जागरण मनाता नहीं.