भैया दूज
कुम-कुम अक्षत थाल सजाए,
भाई की राह निहारे।
दूर- दूर से चलकर भाई,
बहना घर आज पधारे।
पावन प्रेम भाई बहन का,
ये सारी दुनियां जाने।
सजी हुई थाली हाँथों में,
है अधरों पर मुस्काने।
उलझन में फस जाए भाई,
मुश्किल पड़ जाए आना।
नभ से चंदा नीचे आकर,
तू ही दूज करा जाना।
अभिनव मिश्र अदम्य