भैया दूज
बहन भाई रिश्ते में होता प्रेम प्यार
भैया दूज त्यौहार पर दिखे आपार
भाई बिन बहना बहना बिन भाई
एक दूसरे बिन रहती सूनी कलाई
संग साथ पले बढे झगडे थे खेले
घर आंगन छत नीचे लगते थे मेले
माँ बाप से झूठी शिकायत लगाते
एक दूसरे को थे डांटवाते पिटवाते
एक ही चीज को पंसद कर जाना
पाने हेतु फिर मर मिट कट जाना
दीवाली पर पटाखों की बंदरबाट
एक दूसरे के बजाते पड़ती डाँट
दादा दादी नाना नानी गोदी प्यारी
लगती थी भाई बहनों को दुलारी
सांझे चुल्हें पर संग संग रोटी खाना
झपट्टा मारके छीन रोटी खा जाना
मामा जी का जब घर होता आना
गोदी में बैठ ठग कर पैसे ले जाना
घर में होता थि बरगद नीम का पेड़
खूब झूलते झूमते हम संग उस पेड़
खेल खेल में तोड़फोड़ कर जाना
दादी के डर से चुपके छिप जाना
कोतूहल सिर परआसमां उठाना
आ जांए बापू तो शान्त हो जाना
प्यारी बगिया के थे हम प्यारे फूल
पल में लड़ाई झगड़ा जाते थे भूल
शादीशुदा हो,गए नजरों से हैं दूर
बढ गया प्रेम आपार रहकंर दूर
रक्षाबंधन भैयादूज तक हैं सीमित
भावुक हैं, चाहते हैं हम असीमित
सचमुच दिन थे वो बहुत अनमोल
दिली रिश्ते थे नही बिकते थे मोल
आ जाते हैं आँसू कर वो दिन याद
भाई बहन रिश्ता रहे,करें फरियाद
सुखविंद्र सिंह मनसीरत