भू-जल संग्रह दोहावली
धरती माँ की कोख में, जल के हैं भंडार ।
बूंद-बूंद को तड़प रहे, फिर भी हम लाचार ।।
दोहन करने के लिये, लगा दिया सब ज्ञान ।
पुनर्भरण से हट गया, हम लोगों का ध्यान ।।
गहरे से गहरे किये, हमने अपने कूप ।
रही कसर पूरी करी, लगा लगा नलकूप ।।
जल तो जीवन के लिये, होता है अनमोल ।
पर वर्षा के रूप में, मिलता है बेमोल ।।
अगर संजोते हम इसे, देकर पूरा ध्यान ।
सूखा बाढ़ न झेलते, रहता सुखी जहान ।।
आओ मिल-जुल रोक लें, हम वर्षा की धार ।
कूप और नलकूप फिर, कभी न हो बेकार ।।
बूंद-बूंद जल रोकिये, भरिये जल भंडार ।
पुनर्भरण से कीजिए, अब अपना उद्धार ।।
मेहनत से बढ़ जायेगा, भू-जल का भंडार ।
मानो नेक सलाह यह, कहे अवधेश कुमार ।।