भूल भूल हुए बैचैन
भूल भूल हुए बैचैन
अहम अहमियत भूल बैचैन
चिन्तामनी रेखा ललाट आता
वक्त बार-बार समझाता पर
समझ नहीं पाता जग जन
काल गाल विशाल बना बैठा है
काल की चाल समझ नहीं पाता
मर्यादा विहीन को निज मर्यादा
परिस्थिति हालात विविध रूपों
में समझाने आता रहता है पर
समझ गए तो हुए मालो माल
नहीं समझे तो कालों की गाल
टी.पी. तरुण