जगत कंटक बिच भी अपनी वाह है |
हिरख दी तंदे नें में कदे बनेआ गें नेई तुगी
हम सब मिलकर, ऐसे यह दिवाली मनाये
पिता की इज़्ज़त करो, पिता को कभी दुख न देना ,
बिन बुलाए कभी जो ना जाता कही
कभी कभी सच्चाई भी भ्रम सी लगती हैं
*राम तुम्हारे शुभागमन से, चारों ओर वसंत है (गीत)*
ज़रूरी नहीं के मोहब्बत में हर कोई शायर बन जाए,
सुंदरता अपने ढंग से सभी में होती है साहब
हमने माना कि हालात ठीक नहीं हैं
"मुझे हक सही से जताना नहीं आता