भूल ना था
भुल ना था
पश्चाताप के आलम में
मैअपना वजूद खोज रहा
विग्रह् के मनोरम मे
मै रख कलम कुछ सोच रहा
क्यो मैं अपने मां बाप की भूल था
उम्मीद उनकी मन पर रखकर
नाकामयाबी से सोच रहा
निस्काम को खुद पर रखकर
उस दुखी मन से सोच रहा
क्यो मैं अपनो के कर्मो की भूल था।
कमी मुझमें उस खुदा ने चाहकर,
ना रखी थी
कमी देख अपनो ने मेरे नसीब को मारकर
ना की हसी थी
उसकी असफलता हां मेरे कर्मो की भूल थी
रख सपना अपनो का अपने मन पर
मेहमान बन देख रहा
भूल अपनों की भूल कर दृढ मन पर
अरमान बन कह रहा
न मैं अपने मां बाप की ना भूल ना था