भूल नहीं पाता तुम्हे
शीर्षक-भूल नहीं पाता तुम्हे
आज भी घर के बरामदे में बैठ
अपने चश्मे को पोछता हुआ
मैं इंतज़ार कर रहा तुम्हारा
हवा बहती हुई जब
पर्दों को उड़ा ले जाती है
घर में लगी तुम्हारी तस्वीर को
हिला सा जाती है
तुम्हारे इंतज़ार में मन ठिठक सा जाता है
मैं गमलो में लगे पौधों को
सींच कर भूल जाना चाहता हूँ
पर भूल नहीं पाता तुम्हे
तुम्हारे एहसास के होने मात्र से
खिल सा जाता हूँ
गमले में लगे फूलो की तरह
दीवाली की रंगोली
होली में खाई भांग की गोली
सब याद आते है
पसीने की बुँदे
जो मालपुए बनाते वक़्त गिरते थे
तुम्हारे जिस्म से
उसे देख मैं और भी मीठा हो जाता था
मैं सब भूल जाना चाहता हूँ
पर भूल नहीं पाता तुम्हे—अभिषेक राजहंस