भूल नहीं पाएंगे
(सत्य घटना का रेखाचित्र)
बात कुछ वर्ष पूर्व की सर्दी के मौसम की ही है। मेरे दो जुडवां बेटे हैं इनमें से एक बेटे की कोई प्रतियोगी परीक्षा थी। परीक्षा केन्द्र अधिक दूर होने के कारण मेरे पति कार से उसे छोड़ने जाने वाले थे। प्रतिदिन काम वाली बाई जब सफाई करती है तब हम कार बाहर सामने खड़ा कर देते हैं। रोजाना की तरह हमारी आई 10 बाहर खड़ी थी। मेरे पति व बेटा गाड़ी में बैठे और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट की नीचे से एक नन्हे से कुत्ते के बच्चे के चिल्लाने की आवाज आवाज आयी। मेरे पति जब तक रोकें तब तक गाड़ी का पिछला पहिया नन्हे डाॅगी के दाहिने जबड़े व आगे वाले पैर को आधा
कुचल कर आगे निकल गया था।
हुआ यह था कि वह मासूम आराम की इच्छा से गाड़ी के नीचे बैठा था। मेरे पति को इस बात का पता ही न चला और यह हादसा हुआ। मैं अपने दूसरे बेटे के साथ बाहर ही खड़ी थी और आस पड़ोसी भी थे। हम सब दौड़े। मेरे पति घबराए हुए असमंजस में हो रहे थे क्यों कि बेटे की परीक्षा का समय होता जा रहा था। उनका चेहरा उतरा हुआ था । मैंने पति को तसल्ली देते हुए रवाना किया।
उस नन्हे से कुत्ते की हालत व तड़प देखी नहीं जा रही थी। सबसे पहले मैंने उसे पानी पिलाया और मैं व मेरा बेटा उसे सहलाते रहे। मैंने बेटे से कहा और वह स्कूटी पर एक पड़ोसी बच्चे के साथ बैठकर उस नन्हे डाग को गर्म शाॅल में लपेट कर लेकर वेटरनिरी हास्पीटल में भेजा । वहां बेटे ने उसको दर्द निवारक व एंटीबायोटिक इंजेक्शन लगवाए तथा ड्रिप चढ़वाई ।
बच्चा लगातार कूं कूं कराह रहा था। उधर परीक्षा केंद्र में बेटे का, बाहर पति का और उधर घर में मेरा बुरा हाल। बेटे का पेपर भी मन न लगने के कारण बिगड़ गया।
ढाई घंटे बाद बेटा उस नन्हे कुत्ते के बच्चे के साथ घर लौटा। बच्चा कुछ ठीक था। उसकी माँ सड़क पर घूमने वाली कुत्ती थी। वह बार बार अपने दूसरे बच्चों के साथ मिलकर उस बच्चे को ढूंढ रही थी। उसके आते ही वह उसके तरफ न लपके इसके लिए हमें रोटी लेकर तैयार बैठे थे जिससे उसका ध्यान उस की तरफ आकृष्ट न हो।
बच्चे को गर्म शाल में लपेटा हुआ था। उसी अवस्था में शाल सहित उसे हमने अपने वराण्डे में शेड में लिटा दिया और आसपास कपड़े लगा दिये। रात भर उसकी माँ आ आकर उसे चाट चाट कर प्यार कर रही थी। हम सुबह तक उसके स्वास्थ्य में सुधार के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहे व हम सब का मन बहुत उदास रहा। खाना नहीं खाया गया हम में से किसी से।
बच्चा सुबह कुछ ठीक दिखा। हमारा मन खुश हुआ परन्तु कुछ खाने में असमर्थ था। दिल द्रवित हो रहा था पर क्या कर सकते थे।उसे लगातार पानी पिलाते व सहलाते रहे।
परन्तु ईश्वर की इच्छा।दूसरे दिन का सवेरा देखना उस नन्हे की किस्मत में न था।
हमने उसको दफनाया। काफी समय तक हम इस सदमे से उबर न सके। उस बेजुबान की तड़प व उसके जाने के बाद उसकी माँ व भाइयों की छटपटाहट हम आज तक नहीं भूले।
मेरे पति आज भी अनजाने में हुई उस भूल के लिए अपने को दोषी मानते हैं। मैंने व मेरे पति ने पश्चाताप वश दो दो एकादशी व्रत कर उसकी आत्मा की शांति हेतु एक तुच्छ सा प्रयास ईश्वर की कृपा से कर लिया परन्तु अफसोस आज भी बरकरार है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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