भूल जाना ही श्रेयस्कर है
कुछ नाम ,कुछ यादें,कुछ लोग ,कुछ स्थान , और बहुत कुछ
भूल जाना ही अच्छा है,
तुम्हारे मन मस्तिष्क को बीमार करते, तुम्हारी नींद चुराते , दीवारों में घुसे हुए
बुरी तरह तुम्हे जकड़े हुए ।
जिनके आगे सौंपा गया है स्वाभिमान,
अपने को हो सौप दिया है तुमने
उनके अनुसार
तुम्हारा सब कुछ
तुम्हारे मूल्य शून्य , सिद्धांत खुद को कोसते हुए,
तुम्हारी चेतना को झुलसा दिया गया है पंगुता की ओर, लाचार ,तुम्हारे संस्कारों की दुहाई ,
खामोशी की तरफ बढ़ते ,सब कुछ खामोशी से सहते ,
कितने दुर्बल कर दिए गए हो तुम
और होते जा रहे हो
क्यूं नहीं सोचते ,अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व की अवधारणा ,
गिरवी मत रखो अपने को
,किसी का दोष नहीं ,
गीता सार को याद करो
,भूल जाओ ऐसे लोगों को ,ऐसे नामों को ,यादों को
जो घुटन दे रहे हैं , तिल तिल कर मार रहे हैं
तुम्हारी आत्मा ,व्यक्तित्व
उन्हें भूल जाना ही श्रेयस्कर है , अपने को जीवित रखने के लिए।