भूल गए हैं
मेरे आँगन की मुंडेर पर
चिड़ियों के दल
बादल बन-बन
चुगना दाना भूल गए हैं
तेरे जाने की सुनकर ज्यों
मेरे नयन बाँवरे
पलकों को झपकाना
भूल गए हैं
बहुत दिनों से
नेह के बादल
मेरे मन के
नील गगन पर
गहराना ही भूल गए हैं
आँगन के
कुसुमित सेबों के
वृक्षों पर
अब
भले प्रवासी पंछी
मीठा गीत सुनाना
भूल गए हैं
बहुत दिनों से
कटे खेत पर
वो मंडराना
भूल गए
क्यों भूल गए हैं
सुधियों के
वे सुघड़ बटोही
मेरे आँगन-गाँव की
गलियों में
जैसे अब
आना-जाना भूल गए हैं