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25 Sep 2021 · 2 min read

भूली-बिसरी यादें

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आपसे मिले तो
याद आ गयी कुछ बातें।
बिसरने लगी कुछ बातें।
क्यांकि आप थे सौन्दर्य
दुःस्वप्न की तरह
आपाद मस्तक।
याद आई हमें
फुलों की खुश्बू,
आधी रात का पूरा चन्द्रमा,
सावन की काली घटायें,
चैत का बौराया बसंत,
फागुन का मस्त बयार।
और
महुआ से महका वातावरण,
भादो की उमड़ती, उफनती नदी।
और
सुबह का उगता हुआ सूरज,
सागर में पिघलता हुआ दिन।
और
हरे कोमल पत्ते,
दूब पर लटकी हुई शबनम की बुँदें।
सूनी पगडंडी पर एकाकी राही।
गोधूलि की वेला में
जँगल से लौटती, रँभाती गायेँ।
धरती के छाती को फाड़
अंकुरते सुकोमल पौधे।
लोक गीतों में विछोह के दर्द की
सुन्दरता।
सौन्दर्य का अर्थ ।
और
शुक नासिका,
उन्नत उरोज,
उँचा ललाट,
कमान सी तनी भवें,
काले नयन।
नागिन सी लम्बी काली लटें।
गोरा रँग,
श्याम वर्ण ,
लम्बी सुडौल अँगुलियाँ।
पतले ओंठ,
रँगे हुए नाखून,
मेंहदी रची हथेली,
पाँवों के महावर,
गहरी नाभि,
सुराहीदार गर्दन,
भारी नितम्ब,
खूबसूरत पाँव,
रक्ताभ कपोल,
तिरछी चितवन।
और
मृदु हास,
आकुल आमंत्रण।
तथा
लगे भूलने
नग्न सत्य,
जीवन के तथ्य।
गुलाब छूते हुए चुभा हुआ शूल।
दोपहर का तपा हुआ सूरज।
किनारे को निगलती बाढ़।
चैत का बुखार,
फागुन का जाड़ा।
महुआ बीनती झगड़ती औरतें।
चूता हुआ फूस का छत।
छप्पर उड़ाकर ले जाता हुआ झँझावात।
आसमान पर चढ़ता हुआ
तीक्ष्ण सूरज।
कट कर गिर गये वृक्ष।
सूखते पेड़।
धरती पर जन्मे हुये बेकार दूब।
सड़क पर कुचले कुत्ते।
पत्थर तोड़ते लोग,
बदन से चूता पसीना।
साँझ के साथ बढ़ती रतौंधी।
सूखाग्रस्त धरती।
खेतों के दरार,
अकाल का प्रकोप,
तिल-तिल कर झुलसते धान के पौधे।
कूँए में डूबता सा गरीबों का
कमजोर होता स्वर।
दिन के शेष पर अपना खाली हाथ।
आग जलाकर प्रतीक्षा करती पत्नी।
टकटकी लगाये बच्चे।
सिंह की तरह हिंस्त्र व भयावह दिन।
नाग की तरह विषैली
आकाओं की झिड़कियाँ।
अपना नपुँसक क्रोध।
आत्म प्रशंसा में कहे गए शब्द।
संघर्ष का कुरूप चेहरा।
अपना विषहीन दन्त।
बेबसी में ओढ़ी विनम्रता।
पैरों के नीचे से खिसकती धरती।
किसी के अहंकार के नीचे दबा
मेरा अहम्।
गौरवान्वित होने से वंचित व्यक्तित्व।
कटी हुई नाक होने का अहसास।
लटका हुआ मुँह।
धँसी व सिकुड़ी हुई आँखें।
पीले नयन।
कालिख लगे चेहरे।
बदहवास केश राशि।
बदन का बदरँग रँग।
चमड़े का पीत वर्ण।
प्यास से सूखे ओंठ।
खुरदुरी बेडौल अँगुलियाँ।
फटे हुए नाखून।
मिट्टी सनी हथेली।
बिबाई भरे पैर।
झुकी हुई गरदन।
दुःखता कमर।
लापता नितम्ब।
थके पाँव।
नुँचा चुथा और खसोटे कपोल।
दया माँगती दृष्टि।
दिल दहला देनेवाला क्रन्दन ।
गरीबी से घृणा।
जो याद आया है, है वह सच।
जो भूले वह भी सच।
सदियों से रूठी जिन्दगी का सच।
दरअसल, चौंधिया गया मेरा मन
आपके राजप्रासाद के श्वेत सँगमरमर की
सुन्दरता से।
दरअसल, आपके नक्शे कदम पर चलने को
लालायित हुई और बौखला गयी मेरी आँखें।
दरअसल, अपरिपक्व रह गया मेरा मन।
दरअसल,आके आपके प्रासाद तक
मैं भी चाहा हो जाना परिवर्तित
प्रासाद में।
दरअसल _ _ _ _ _ _

Language: Hindi
430 Views
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