भूरी चिड़िया काला कौवा (गीत)
भूरी चिड़िया काला कौवा (गीत)
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भूरी चिड़िया काला कौवा कहाँ गए अब सारे
(1)
फुदक-फुदक कर चलती-फिरती सुबह रोज दिख जाती
दादा जी के हाथों चावल ढूंढ – ढूंढ कर खाती
छोटी – सी चिड़िया के पतले स्वर लगते अति प्यारे
भूरी चिड़िया काला कौवा कहाँ गए अब सारे
(2)
काला कौवा कर्कश स्वर में रोज खूब गाता था
कभी अकेला कभी झुंड में उड़ता दिख जाता था
इधर – उधर से जो मिल जाता यह खाते बेचारे
भूरी चिड़िया काला कौवा कहाँ गए अब सारे
(3)
शहरों में बढ़ रहा प्रदूषण है इनका हत्यारा
कटते पेड़ फ्लैट की संस्कृति कैसे करें गुजारा
पर्यावरण बचाने वाले हों नवयुग के नारे
भूरी चिड़िया काला कौवा कहाँ गए अब सारे
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451