भूमि भव्य यह भारत है!
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भूमि भव्य वह भारत है,
जो चिंतन-मंथन में रत है।
भूमि भव्य यह भारत है।
सभ्यताओं ने नेत्र खोले,
सीखने लगे लिपि औ’ भाषा।
हमने तब सरस्वती के तट,
दिए विपुल वैदिक परिभाषा।
खगोल,गणित,दर्शन,साहित्य
जगभर को हमने दान किया।
अष्टाध्यायी , योगसूत्र, पर
हमने न तनिक अभिमान किया।
इतिहास सुनिष्ठा से नत है,
भूमि भव्य यह भारत है।
लौकिक सुख तृण सम त्याग दिया
ऋषियों ने ‘बुद्ध’ कमाने को।
हैं हुए प्रकट बहु देव यहां,
जीवन का मर्म बताने को।
होम किया सर्वस्व जिन्होंने,
प्रण की रक्षा में दिए प्राण।
उन महावीर व्रतपालक पर,
होता हमें असीम अभिमान!
अविचल देवव्रत का व्रत है,
भूमि भव्य यह भारत है।
-सत्यम प्रकाश ‘ऋतुपर्ण’