भूख-चोका
भूख-विधा-चोका
एक बुढ़िया
जबरन चलती
आती इधर
गिरती संभलती
डग से मानो
जिंदगी को छलती
चिंदी पहने
चिथड़े ही गहने
आँखों में झाँई
आंते कुलबुलाई
सूखी ठठरी
हाथ लिए गठरी
कंधे पे बोरी
सर्वस्व ये तिजोरी
सिर घोसला
सुस्त पड़ा हौसला
बालों में जीव
उत्पात, उपद्रव
अंतर्वेदना
माथे में सम्वेदना
सिर छालती
गठरी खंगालती
पार न पाती
पुरजोर खुजाती
भूख का भाव
पेट में अंतःस्राव
कचरेदान
उसका वरदान
कुछ बोलती
कूड़े को टटोलती
अमृत-प्याला
एक जूठा निबाला
भाव जो गढ़े
इसको कौन पढ़े?
शब्दों में कौन मढ़े?
-©नवल किशोर सिंह