भूखों को
भूखों को
भूखों को गेंहूँ की बाली दो मालिक।
आगे कर दी भीड़ लुटेरों की मालिक ॥
फ़क़त वोट पर ही हक़ है मज़दूरों का ।
जीत नाम तो महलों के कर दी मालिक।
मेरे अंदर एक मेमना डरता सा ।
उसके अंदर हिंसा हंटर की मालिक ॥
गाँवों को सुंदर चिड़या सा रूप दिया ।
शहरों को बाजों की नज़रें दी मालिक ॥
‘कौशल’ को कर दिया क़ैद दीवारों में ।
सूदखोर के घर है छत गिरवी मालिक ॥