भूखे पेट न सोए कोई ।
अगर थोड़ा-सा समझदार बन जाओ,
अहम् भाव को त्याग सको,
अपना व्यक्तित्व पहचान लो,
तुम भी वहीं इंसान हो,
भूख में लंगर छ्के हो,
भूखे पेट न सोए फिर कोई ।
अन्न धान का मोल यदि समझो,
उत्सव शादी में भोजन को परसों,
यूँ जूठन छोड़ कर ऐसे न रख दो,
भोजन के अभाव में यदि मेहमान है तरसे,
रुतबे के चक्कर में भूख को न समझे,
भूखे पेट न सोए फिर कोई ।
बर्बादी का आलम भी देखो,
बिन भोजन के मरते है बहुतेरे,
फेका गया कूड़े के ढ़ेर में जैसे,
लग गये खाने को पागल-सा बनके,
खुद भी परखो भूख के दर्द को,
भूखे पेट न सोए फिर कोई ।
पेट भरो पर पैसे न भरो,
भोजन की कीमत उनसे पूछो,
बच्चे जिनके कुपोषण से ग्रसित हुए,
भूख से अपना जीवन है त्यागे,
एक निवाला खुद आहार में कम करो,
भूखे पेट न सोए फिर कोई ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।