भूखा
भूखा सर को उठाए भी तो कहां ये अपने हाल पे रोता है
कानों में तेल डाले बैठे सिस्टम अपने खाट पे सोता है
कोई जात को रोता है कोई पात को रोता है
भूखा तो दिन रात पेट से भात को रोता है
दाना कोई हस के देता है कोई चिढ़ के देता है
बस पेट के खातिर भूखा अपनी अस्मत को खोता है
~ सिद्धार्थ