भुलू तुम्हें कैसे
भुलू तुम्हें कैसे,
पाऊं तुझे कैसे
उम्र बढ़ रही, रिझाऊं परिवार को कैसे
ना पर जोर है, हैरान-परेशान हूं।
तुझे पाना मुश्किल होता जा रहा है।
भुलू तुम्हें कैसे नामुमकिन होते जा रहा है।_
बैचेनी बढ़ रही हैं , जिंदगी ना उम्मीदी में गुजर रही हैं ।
– डॉ. सीमा कुमारी, बिहार, भागलपुर, दिनांक- 2-4-022की मौलिक एवं स्वरचित रचना जिसे आज प्रकाशित कर रही हूं।