भुला देना…..
कुछ चंद फरेबी अल्फाज समझ इन्हें भुला देना
एक हसीन सपना समझ दिल को बहला लेना
न जाने क्यों यकी हो चला है अब भोर होने को है
मेरे सपनों में आई परी अब दामन छुड़ाने को है
अभी अभी तो आंख लगी ही थी इस हसीन रात में
कमबख्त इस ख्वाब ने थोड़ी ज्यादती कर दी मुझ पर
कहा था कि मंजर रहेंगे पूरी रात आंखों में तैरते
हकीकत ने मेरे ख्वाबों को मुकम्मल न होने दिया
बहुत नाजुक है दिल मेरा बहुत संजीदा सा हाल है अपना
ना कोई झूठ ना फरेब ही मनसिब रहा अपना
यूं तो हसीनों के मेले बहुत है मेरे गिर्द में
ये तो कुर्बान हुआ आपका शागिर्द बनने को
काश के अनजान बने रहते हम दोनों खुद की नजरों से
अब तो ये गुनाह करके तगड़ी मुसीबत कर ली
अब तो एहसास भी है इकरार भी यूं कह दूं तुझसे प्यार भी है
कोई नश्तर सा चुभ रहा सीने में मेरे अये हमदम
क्या कोई बे वजह भी दिल पे भार लिए घूमता है
जब इल्म ना था तो कोई जुल्म भी न था