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10 Aug 2019 · 4 min read

भुलक्कड़ हूँ मैं

भुलक्कड़ हूँ मैं // दिनेश एल० “जैहिंद”

कहते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे ये स्मरण-शक्ति आदमी के पल्ले से ठूँठ के पेड़ की तरह धीरे-धीरे गायब हो जाती है |
ये आम बात है | मगर इसमें खास ये है कि लोगों से सुना हूँ कि साहित्यकार लोग बड़े भुलक्कड़ हुआ करते हैं |
और मैं ठहरा साहित्यकार ! भला मैं कैसे याद करूँ
कि कब क्या कहाँ मैं रखकर भूल गया या खोजने पर नहीं मिला तो बड़ी डांट पड़ी या बीबी की काफी झार सुननी पड़ी |
यूँ तो मैं काफी चूजी हूँ पर कभी न कभी, कहीं न कहीं भूल हो ही जाती है | और फिर भुलक्कड़ का तमगा मिल ही जाता है |
मैं यहाँ अपने दो संस्मरण पेश कर रहा हूँ, जिससे मेरे पाठक बंधु मुझे भुलक्कड़ लेखक के खिताब से नवाज सकते हैं और मुझे लिखित प्रमाण पत्र भी दे सकते हैं |

पहला संस्मरण —

बीते तीन-चार साल पहले की बात है | कार्तिक का महीना चल रहा था | इस माह में बिहार का महान षष्ठी व्रत आता है | घर-घर की महिलाएँ व पुरुष इस त्यौहार में विश्वास रखते हैं और सूर्य उपासना करते हैं | मेरी माँ और मेरी पत्नी यह व्रत रखती हैं |
मैं भी यह व्रत विगत तीन सालों से रख रहा हूँ परन्तु
उस समय मैं यह व्रत स्वयं ग्रहण नहीं किया करता था | तीसरा दिन पहला अर्घ्य यानि घाट जाने का होता है | तो मैं अक्सर तीसरे दिन ही फल, फूल व प्रसाद हाट से लेने जाता हूँ |
तीसरे दिन मैं बाजार गया और सारे फल रूपी प्रसाद खरीदने लगा | सारे प्रसाद खरीद लिये बस एक-आध सामान रह गये थे | मुझे याद आता है –
अरुई, सुथनी, हरी अदरक व हरी हल्दी के साथ एक-दो और सामान खरीदने थे | मैं एक दुकान के पास चलते-चलते ठहर गया, उसके पास इन सामानों को देखा, भाव पूछा और तौलवाने लगा | समय जल्दी-जल्दी भाग रहा था | देर होती जा रही थी | जल्दी से तौलवाया और एक पॉलिथिन के बड़े थैले में रखवाया | पैसे दिए और घर की ओर चल दिया | बाजार से मेरा घर लगभग ३ किलो मीटर दूर पड़ता है |
पर ये क्या ? जब मैं तकरीबन आधी दूरी तय कर चुका तो मेरे दिमाग को अचानक एक जोरों का झटका लगा -“क्या मैंने सामान वाला थैला अपने झोले में रखा क्या ?”
अब तो मैं चकरा गया, सारे झोले बदहवाशी में टटोलने लगा पर किसी में भी वह काला पॉलिथिन
का थैला नहीं था | मैं घबराया, माथा ठोंका और उल्टे साइकिल घुमाई और जल्दी-जल्दी मशरक बाजार पहुँचा | पर ये क्या… ? वह दुकानदार वहाँ नहीं था | बगल वाले से पूछा तो बताया कि वह तो अपनी दुकान उठाकर घर चला गया | मैं अपना सिर पीटकर रह गया | अपने आप पर और अपनी भुलक्कड़ी पर बड़ा अफसोस हुआ | खैर ! दूसरी दुकान से पुन: वही सामान लिया और घर आया | देर हो चली थी सो पत्नी साहिबा की जलीकटी भी सुनी | सारा वाकाया सुनाया तो कुछ शांत हुईं |

दूसरा संस्मरण —

साल भर पहले की बात है | मैं आए दिन अपनी दुकान हेतु सामान खरीदने बाजार जाया करता हूँ |
उस दिन सामानों के लिस्ट के साथ मैंने पैसे रखे और झोला-बोरा लिया |
….फिर बाजार चल दिया | आज मेरे पास मेरी मोटर साइकिल है पर पहले वाले संस्मरण काल में
मेरे पास मोटर साइकिल नहीं थी | उस समय मेरे पास साइकिल थी | साइकिल तो आज भी चलाता
हूँ पर कभी-कभी | दुकान के सामान, घरेलू खाद्य पदार्थ और साग-सब्जी तो मैं अब मोटर साइकिल
से ही लाता हूँ |
हाँ…. तो मैं बाजार चल दिया | बाजार पहुँचकर जगह-जगह सामान खरीदे | एक पुस्तक की दुकान
से कलम, रबर-कटर व पेंसिल के हॉफ-हॉफ दर्जन
पॉकेट लिये और काले पॉलिथिन के थैले में रखकर
अच्छी तरह बाँध लिये और अपने झोले में रखकर जब आश्वस्त हुआ तो खैनी की दुकान पर गया | वहाँ १ किलो ग्राम खैनी ली, पैसे चुकाए और अब आलू की आढ़त वाली दुकान पर आए | वहाँ दुकानदार से कहाँ – “मुझे कुछ पैसे बाकी के कटाने हैं |” दुकानदार अपना रजिस्टर निकाला, देखा और मुझे भी दिखाया | मैंने बाकी के कुछ पैसे जमा किए और वहाँ से चल दिया |
मैं राशन की दुकान पर आया और अपना सारा सामान बोरे में कसा जो मैंने पहले से खरीद रखा था | मोटर साइकिल पर लादा और घर की राह पकड़ी |
घर पर आते ही सारा सामान दुकान के हवाले कर दिया और माँ-बच्चों से कहा कि एक काली थैली में कुछ कलम वगैरह है देख लेना, लिस्ट थमाकर कहा कि सामान मिला लेना |
……और खाना खाने बैठ गया | बीच में बच्चों ने कहा कि कलम की कोई थैली किसी झोले में नहीं है | सुनकर मेरा माथा ठनका |
काली थैली तो मैंने किताब वाले की दुकान पर अपने झोले में रखी थी, पर वो कहाँ छूट गयी ? कहीं मैंने निकाली है ही नहीं ! छूटी तो कहाँ छूटी ?
सैकड़ों बातें दिमाग में घूमने लगी |
सोचते-सोचते शाम हुई | फिर बाजार पहुँचा | सीधे खैनी वाले के पास पहुँचा | उससे पूछा | मगर उसने
साफ इंकार कर दिया | मैं आलू वाले के यहाँ भी
गया था, याद नहीं आ रहा था | मैं पुन: वापस घर आ गया और अफसोस जताते हुए घोषणा कर दी
कि चलो कहीं गिर गया, मुझे याद नहीं आ रहा !
मेरे डेढ़ सौ रुपये डूब गए |

==============
दिनेश एल० “जैहिंद”
20. 05. 2019

Language: Hindi
Tag: लेख
318 Views

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