भुलक्कड़ दोस्त
मुंबई में मेरी एक प्रिय दोस्त है ऋतुज़ा, उसे मैं प्यार से ऋतु ही कहता हूँ! दोस्ती नई-नई ही हुई है लेकिन हमारी अच्छी-ख़ासी जमती है बिल्कुल सूई-डोरे की तरह! बस कभी-कभी उसकी कमज़ोर यादास्त की वज़ह से यह मोटी-तगड़ी रिलेशनशिप पतन के पॉजीशन पर पहुँच जाती है, इसलिए मैंने उसे A ग्रेड(Upper Grade) की भुलक्कड़ की पदवी दे डाली है!अब वह इस मामले को अक्सर खींच -तानकर अपना नाक-मुँह टेढ़ा करती रहती है और मुझे दिन-दहाड़े धमकाती रहती है! मैं कल दोपहर में बैठा हुआ था कि ऋतु का फोन आया और वह बोली आज शाम घर पर आ जाना बर्थडे पार्टी है,बर्थडे पार्टी का नाम सुनते ही मेरा रूह काँपने लगा! दरअसल आजकल यो-यो टाईप के युवा केक के कट्टर दुश्मन हैं, ये केक खाते नहीं बल्कि उसे पूरे सिर और चेहरे पर चुपड़ लेते हैं,जैसे कोई जंगली भैंसा कीचड़ से सना हुआ बाहर निकला हो! इसलिए मैं थोड़ा अलर्ट रहता हूँ कि कहीं कोई मुझे भी पकड़कर जबरदस्ती इस कैटेगरी में न घुसेड़ दे!
शाम ढलते ही मैं सूट-बूट में सज-सँवर कर ऋतु के घर पहुँचा, ऋतु बरामदे में कुर्सी पर साइलेंट मुद्रा में बैठी हुई थी, इर्द-गिर्द सिर्फ़ घर के ही लोग दिखाई दिये! कहीं कोई मित्र मंडली नज़र नहीं आ रहा थी, माहौल भी थोड़ा ऊटपटाँग लग रहा था! अचानक ऋतु ने मुझसे कहा- “बहन जी इधर बैठो ना” यह सुनते ही मैं आवाक् रह गया,मुझे लगा इस पर कहीं कोई डेन्जर चुड़ैल का साया तो नहीं पड़ गया जो आज यह अनाप-शनाप बके जा रही है! सोचकर मेरे हाथ-पाँव फूलने लगे तभी उसके भाई साहब आये और बोले अरे यार इसे मिड-नाईट गुंडई का दौरा पड़ा है यह अभी मेल-फीमेल, आदमी-जानवर सब भूल जाती है! तुम्हारी किस्मत बहुत ही अच्छी है, इसने तुम्हें कम से कम “बहन जी” बोल दिया, नहीं तो अभी थोड़ी देर पहले बाजू वाले गुप्ता अंकल को टॉमी कहकर बुला रही थी! आजकल उसकी इस बीमारी से पूरा घर ही नहीं आस-पड़ोस भी आतंकित हैं, अभी कुछ दिन पहले उसने चाय में चायपत्ती की जगह मिर्च पाउडर डाल दिया था! बस फिर क्या था सुबह-सुबह ही उसकी चाय के प्रति सच्ची लगन और मेहनत ने सबकी आँखों में आँसू ला दी थी,उस दिन पूरी फैमिली फूट-फूटकर रोई थी,जैसे कोई अपना बिछड़ रहा हो, बड़ा ही भावुक दृश्य था वह!
मुझे तो आंटी जी ने बताया कि इसने जस्ट पिछले हफ्ते ही स्कूटी से गिरकर पैर तोड़ लिया है और पैर का इलाज करवाने में भूलवश सामने के दोनों दाँत भी उखड़वा ली,उसे तो यह बाद में याद आया कि दर्द तो पैर मैं था दाँत फालतू में उखड़ गए! मैंने मन ही मन कहा- शुक्र है इस भुलक्कड़ प्राणी ने अपनी हाथ नहीं कटवाई, थोड़ा ही नुकसान हुआ है! अक्सर स्कूटी पर बैठते ही उसे महारानी लक्ष्मीबाई की फीलिंग्स् आने लगती है,क्या स्कूटी चलाती है! एकदम धाँसू कहिये, कट-कला में निपुण,अच्छे-अच्छे कलाबाजों की बोलती बंद कर देती है, और साथ में बैठने वालों की सांसें भी! एक दिन तो हद हो गई दोस्ती का वास्ता सुनकर मैं भी उसकी स्कूटी पर विराजमान हो गया, मगर मन ही मन यमराज से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर रहा था, क्या पता कब मोक्ष के द्वार खुल जायें! कुछ देर तक तो स्कूटी नॉर्मल चलती रही मगर जैसे ही एक मोहतरमा ने अपनी गाड़ी हमारे करीब से कलाबाजियाँ मारते हुए सन्न् से निकाली, हमारी लक्ष्मीबाई भी बिदक गई और उसके अंदर की मर्दानी जाग उठी! देखते ही देखते हमारी स्कूटी भी बुलेट ट्रेन की तरह हवा से बात करने लगी, मैं असहाय सहमा हुआ टकटकी लगाए भगवान से त्राहिमाम् की गुहार लगा रहा था! मुझे पूरा भरोसा हो चला था कि यह मेरे जीवन का आखिरी पड़ाव होगा, शायद मेरी मृत्यु ब्रह्मा जी ने स्कूटी पर ही टाँक दिया हो! मैंने हड़बड़ाहट में सभी शुभचिंतकों को अपनी दाह-संस्कार के लिए लकड़ियों का उत्तम प्रबंध करने का मैसेज भी कर दिया, इसी दौरान मैं कब उसकी स्कूटी से नीचे लुढ़का पता ही नहीं चला! जब आँख खुली तो मैं अस्पताल में पड़ा हुआ कराह रहा था और हमारे चांद जैसे क्यूट मुखड़े का हुलिया बदल चुका था! साथ में सारी हड्डी-पसली की लोकेशन तितर-बितर हो गई थी और पूरा बॉडी सफ़ेद पट्टियों में दुल्हे की तरह सजा हुआ था! बगल में हमारी बेचारी लक्ष्मीबाई भी खड़ी थी,मेरे होश में आते ही उसने बड़े मासूमियत से कह दिया- “सॉरी न..यार मैं थोड़ा ज्यादा इमोशनल हो गई थी,याद ही नहीं रहा कि पीछे तुम भी बैठे हो”
मैंने भी कलेजे पर भारी पत्थर रखकर आहिस्तगी से मुस्कुरा दिया, सोचा चलो मित्रता में लोग जान तक दे देते हैं,मैंने तो बस हड्डी-पसली ही तुड़वाई है!