भुजंगप्रयात छंद विधान सउदाहरण मापनी 122 (यगण)
भुजंगप्रयात छंद मापनी 122 (यगण)
सोमराजी छंद- दो यगण – 122 122
हमारा तुम्हारा |
बनेगा सहारा ||
वहाँ भी चलेगें |
जहाँ वे मिलेगें ||
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सार्द्ध सोमराजी छंद – (तीन यगण )- 122 122 122
जहाँ राम जैसे उजारे |
वहीं है सभी के किनारे ||
भजेगें उन्हीं को सुखारे |
रहें रोशनी में सितारे ||
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भुजंगप्रयात छंद
चतुर्भिमकारे भुजंगप्रयाति’ अर्थात भुजंगप्रयात छंद की हर पंक्ति यगण की चार आवृत्तियों से बनती है।
(लघु गुरु गुरु) के समभारीय पंक्तियों से भुजंगप्रयात छंद का पद बनता ?
(चार यगण )- 122 122 122 122
कहे नारि देखो यहाँ रैन खाली |
मुझे छोड़ रूठी वहाँ सौत पाली ||
रहेंगे वहीं वे जहाँ का उजाला |
जरा छू लिया तो मिले दाग काला ||
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मुक्तक
नहीं नैन आंसू सभी मौन साधे |
खुले कान मूँदें भगे दूर आधे |
बिना बात खारा हुआ नीर सारा~
जले लोग बोले कहो बोल राधे |
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गीतिका आधार भुजंगप्रयात छंद
(चार यगण )- 122 122 122 122
समांत स्वर आने , पदांत लगे हैं
मुझे भी सखी वें बुलाने लगे हैं |
कभी पास आके सताने लगे हैं |
नहीं दूर जाते छिपे देखते हैं,
यही रात में स्वप्न आने लगे हैं |
बताएं तुम्हें हम नहीं शब्द सूझे ,
सरे आम दिल वे चुराने लगे है |
हदें भी बड़ी है जरा छूट ले ली
पकड़ हाथ मेरा दबाने लगे है |
हँसी देख मेरी कहें पास आओ,
अदाएँ बताकर रिझाने लगे हैं
कहेंगे हमी से नहीं हम सुनेंगे
अभी से सभी हक जमाने लगे हैं
लगे देख अच्छा सुभाषा हमें भी,
दिले बाग मेरा खिलाने लगे हैं |
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म०प्र०