भीड़
भीड़ कहाँ किसी की होती है
जब वो सामने होती है
तो जयकारे लगाती है
जब वो पीछे होती है
जान ले के ही जाती है
भीड़ को अपनी आंख नही होती
वो अंधी होती है
भीड़ को कुछ सुनाई कहाँ देता है
वो तो सपेरे की बीन ही सुनती है
भीड़ की आवाज कहाँ होती है
मंदिर ,मस्जिद के नाम पर
किसी मासूम की बलि चढ़ाती है
जाति ,लिंग के नाम पर कत्ले-आम करती है—अभिषेक राजहंस