भीड़ से कुछ हासिल नहीं हो पाता।
जहाँ तक मेरी दृष्टि है मैं जहाँ तक देख पाया, मैंने जाना कि दुनिया में इतिहास बनाने वाला जो भी रहा है, उसने उस कृत्य को अकेलेपन में किया। भीड़ में कुछ हासिल नहीं हो पाता,न ही हुआ है आजतक, आगे भी नहीं होगा।
भीड़ तो बस भीड़ है उसका क्या? भीड़ में उपद्रवी पैदा होते हैं, असामाजिकता फैलती है, उस भीड़ से जिसमें निकलने की कला होगी, और जो निकल सकेगा वो कभी आम नहीं हो सकता।