** भीम लक्ष्य **
8.4.17 ***** रात्रि 11.21
भीम लक्ष्य था उस महा मानव का
जिसने झेली तिरस्कार-पीड़ाएं और
खोया अपनों को मानवहित खातिर हम आज किये हैं वाद अपने हित
मित सीमित है स्वार्थ आज अपने
विश्व मनाता है ज्ञान दिवस अवस
जन्म उनके जन्म-दिवस को आज
उस ज्ञान-पुरुष की महिमा-मण्डन
करता है जग आज विवश-अवस
देख मन करता नित -नित खेद
लोहा माना ज्ञान का दुनियां ने
मान दिया सम्मान दिया जग ने
पग-पग होता उस ज्ञान-पुरुष
की
प्रतिमा का फिर अपमान यहां
एक ओर योग्यता का पीटा
जाता जोर जोर से ढिंढोरा
बोलो आज कहां है वह पैमाना
योग्यता को है जिससे नापा जाता
छुद्र विचार रखते कहते शुद्र उन्हें
सोचो अंतर-अपने इंसानी-दिल में
क्या भेद नहीं, क्या खेद नहीं है
क्यों हठधर्मिता दिल- अपनाते हो
छोड़ो वाद छोड़ो स्वाद जिव्ह्या का
अपनाओ उस परम सत्य को तुम
जिसको अब तक झुठलाते आये हो
गहन विषय है गहन समस्या भारत
मत उलझो वाद-विवाद सम भारत
नहीं कोई किसी से कम जो जन्मा
इस प्यारे भारत , आरत भारत में
भीम लक्ष्य था उस महा मानव का
मानव-मानव में जीवित सदभाव रहे
मातृशक्ति संत्रस्त पीड़ित आज़ाद रहे
भावों को गहे-अहे जीव आज़ाद रहे
माता का अपने पुत्रों के प्रति सदा
सदा सम भाव रहे सम भाव रहे
कह गये सादर भीम मानव मन में
इक -दूजे के प्रति आदर भाव रहे
समता ममता भाव सदा समभाव रहे
लोहा माने विश्व ज्ञान तेरा सरताज रहे लक्ष्यभीम तेरा सदा विश्व पर राज रहे।।
?मधुप बैरागी