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23 Sep 2024 · 6 min read

*भीमताल: एक जन्म-दिवस आयोजन यात्रा*

भीमताल: एक जन्म-दिवस आयोजन यात्रा
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21 सितंबर 2024 शनिवार को हमारी पौत्री रुत्वी अग्रवाल दो वर्ष की होने जा रही थी। अतः यह विचार बना कि क्यों न जन्म दिवस समारोह भीमताल में मना लिया जाए !

यात्रा हल्के पेट उचित
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पहाड़ का अपना एक अलग आकर्षण होता है। यात्रा पर जाने वाले हम बारह लोग थे। आठ बड़े तथा चार छोटे। दो कारों में सवार होकर हमारी वास्तविक यात्रा काठगोदाम से शुरू होनी थी, अतः रामपुर/मुरादाबाद से चलकर हमने बीच में रुद्रपुर पर एक रेस्टोरेंट में एक कप चाय तथा कुछ गोलगप्पे आदि सूक्ष्म जलपान ले लिया। सब स्वादिष्ट था। लेकिन पहाड़ पर चढ़ने के समय पेट न तो खाली होना चाहिए और न अधिक भरा हुआ। अतः हमने मध्यम स्थिति को स्वीकार करते हुए अपनी यात्रा आगे बढ़ाई।

पहाड़ के रास्ते में अक्सर कान बंद हो जाते हैं । अतः हमारे पास चूसने वाली मीठी गोलियॉं थीं। इनका उपयोग भी हुआ।

गाड़ी चलाने में सावधानी जरूरी
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काठगोदाम से कुछ दूर तक तो नैनीताल और भीमताल का रास्ता एक समान है। फिर उसके बाद नैनीताल के लिए सड़क सीधी ऊपर चली चली गई है जबकि भीमताल के लिए दाहिनी ओर मुड़कर नीचे की तरफ उतरना होता है। इस तरह भीमताल की ऊॅंचाई नैनीताल से कम है। पहाड़ पर चढ़ते समय जैसी घुमावदार सड़कें हमें देखने को मिलती हैं, भीमताल में भी सारे रास्ते यही दृश्य दिखा। रास्ते के एक तरफ ऊॅंची चट्टानें और दूसरी तरफ गहरी खाई वाहन-चालकों को सचेत कर रही थीं कि अपनी गाड़ी बहुत संयम के साथ चलाओ। जरा-सी असावधानी से भयंकर दुर्घटनाएं हो जाती हैं । मार्ग में हमें भी एक स्थान पर कार और बाइक की टक्कर हुई देखने में आई। अब गलती किसकी है, यह तो भगवान जाने ! लेकिन नुकसान तो हो गया ! गनीमत यह रही कि किसी व्यक्ति को कोई गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा। अगर हल्के-हल्के गाड़ी चलाई जाए तो प्राकृतिक दृश्य का भी आनंद ज्यादा लिया जा सकता है। रास्ते में इस प्रकार के बोर्ड लगे हुए भी थे।

विशाल झील, अद्भुत टापू
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भीमताल में प्रवेश करते ही मन प्रसन्न हो गया। सामने दूर-दूर तक फैली हुई झील थी। हवा चल रही थी, जिसके कारण झील में तरंगे उठ रही थीं ।आसमान में बादल थे। धूप और छांव की आंख- मिचौली का खेल चल रहा था। झील के किनारे लोहे की रेलिंग लगी हुई थी, जो सुरक्षा के साथ-साथ झील को भी सुंदरता प्रदान कर रही थी। थोड़ी-थोड़ी दूर पर नाव वाले अपनी-अपनी नाव लेकर खड़े हुए थे। हमसे भी उन्होंने आवाज लगाकर कहा कि बोटिंग का आनंद उठाइए। लेकिन हम चलते चले गए। काफी दूर तक कार से चलने के बाद कार पार्किंग आई। यहां पर हम लोगों ने कार खड़ी की और उसके बाद मुश्किल से दो मिनट का पैदल का रास्ता था। जिसमें एक तरफ बाजार था, दुकानें थीं तथा उन दुकानों के सामने बहुत बड़ा स्थान यात्रियों के सुविधाजनक रीति से खड़े होने का था।

यहीं से सीढ़ियां उतरकर नाव में बैठ जाना था। एक दर्जन से ज्यादा नावें यहां उपस्थित थीं । झील के किनारे रंग-बिरंगी नावें अनुपम छटा बिखेर रही थीं ।सड़क पर मूंगफली बेचने वाले थे। गोलगप्पे खिलाने वाले थे। पहाड़ पर ऊपर से हमारे सामने एक बस तथा कुछ कारें आईं । यह दरअसल मोड़ था। कारों पर सवार लोग माथे पर चंदन लगाए हुए थे अर्थात किसी तीर्थ यात्रा से लौटे थे। हमने मन ही मन तीर्थ यात्रियों को प्रणाम किया क्योंकि भगवान के दर्शन से भी ज्यादा पुण्य भगवान के भक्तों को प्रणाम करने से मिलता है।

सीढ़ियों के ठीक सामने न केवल झील थी, बल्कि झील के बीचों बीच एक टापू भी था। हमने पता किया तो मालूम हुआ कि इस टापू पर एक मछलीघर अर्थात एक्वेरियम भी है और रेस्टोरेंट/कैफे भी है। नैनीताल की झील में टापू नहीं है। भीमताल की झील न केवल नैनीताल की झील से बड़ी है बल्कि टापू की उपस्थिति उसे नैनीताल की झील से कई मायनों में और बड़ा सिद्ध कर रही है।
टापू पर जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है। ₹ 350 एक नाव का शुल्क था। नाव में दो बड़े और दो बच्चे बैठ सकते थे। हमने चार नावें कीं। सभी को सुरक्षा-जैकेट पहनाई गई। झील में नौकायन (बोटिंग) करते समय आकाश के देवता प्रसन्न थे। कभी धूप, कभी बादल का दृश्य-परिवर्तन तो हो रहा था लेकिन वर्षा की कृपा ही रही।

देश का सर्वप्रथम टापू-एक्वेरियम
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टापू पहुॅंचकर हम लोग नाव से उतरकर कुछ सीढ़ियॉं चढ़कर टापू के भीतर पहुंचे। वहां प्रति व्यक्ति ₹150 का प्रवेश शुल्क था। भीतर एक्वेरियम (मछली घर) था। एक शिलालेख पर हमने पढ़ा कि आठ जनवरी 2010 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री महोदय ने इसका उद्घाटन किया था। शिलालेख के अनुसार यह देश का सर्वप्रथम टापू एक्वेरियम है विभिन्न प्रकार की छोटी-बड़ी लाल-पीले रंगों की मछलियां अलग-अलग बॉक्स में तैर रही थीं । यह सभी एक से बढ़कर एक सुंदर थीं ।कुछ मछलियॉं प्रकाश भी बिखेर रही थीं ।

एक्वेरियम से सटा हुआ ही कैफे हैं। इसका रिसेप्शन(स्वागत कक्ष) ग्राउंड फ्लोर पर है। बैठकर प्रकृति का आनंद उठाने और कुछ चाय-पानी का स्वाद लेने के लिए जीना चढ़कर पहली मंजिल पर जाना पड़ेगा। हम लोग गए। कुर्सी-मेजें वहां बिछी थीं ।भीमताल की झील का और चारों तरफ पहाड़ियों का दृश्य अपनी संपूर्णता में नेत्रों में भर लेने का कार्य केवल यहीं से संभव है।
समय कब बीता, पता ही नहीं चला। देखते-देखते छत पर हमें बैठे हुए शाम होने लगी। नाव वालों ने भी कह रखा था कि एक-दो घंटे में आप निपट जाना। रेस्टोरेंट वाले ने भी बताया कि शाम सात बजे के बाद रेस्टोरेंट/ कैफे बंद हो जाता है क्योंकि सात बजे के बाद झील में नावें नहीं चलतीं।

सुहावना मौसम
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भीमताल क्योंकि पहाड़ पर स्थित है, अतः हम ठंड की संभावना को देखते हुए गर्म कपड़े भी साथ ले गए थे। लेकिन हमारा पूरा दिन आधी बॉंह की बुशर्ट पहने हुए ही बीत गया। रात में जरूर हमने पूरी बॉंह की शर्ट पहनी। कमरे में एसी चलाने की जरूर रात्रि में नहीं पड़ी। पंखा चलाया। बाद में बंद कर दिया। सुबह जब हम कमरे से बाहर निकल कर उद्यान में टहलने गए तो ठंड जरूर थी। दिन निकलते-निकलते फिर वही गर्मी। कुल मिलाकर मौसम सुहावना था

घर जैसी अनुभूति
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भीमताल की झील और उसके टापू की सुंदर स्मृतियॉं मन में बसाकर हम रात्रि-विश्राम के लिए संजवत विला की ओर चल पड़े। इसकी ऑनलाइन बुकिंग हमारे द्वारा पहले ही कराई जा चुकी थी। कोलाहल देखा जाए तो न झील के किनारे था, और न मार्ग में ही कहीं था। लेकिन ‘संजवत विला’ तो मानो शांति का पर्याय ही था। इसमें चार बैडरूम, रसोईघर, ड्राइंग रूम तथा भोजन-कक्ष था। मुख्य भवन के चारों ओर बाग-बगीचा था, जहॉं अमरूद, बैगन, खीरे आदि के साथ-साथ भुट्टे और कीवी की पैदावार भी थी।
भोजन जैसा चाहो, वैसा मिल जाता था। हमें डोसा, इडली पूड़ी, आलू की सब्जी, बूॅंदी का रायता, दाल रोटी चावल, पनीर-पकौड़ी, आलू-पकौड़ी आदि स्वादिष्ट भोजन मिला। रात में ‘संजवत विला’ के ही उद्यान में हल्की रोशनी और बिजली की झालरों के मध्य हमारी पोती रुत्वी ने केक काटा। केक का इंतजाम भी होटल संजवत विला का ही था।
संजवत विला में अद्भुत रूप से हमें प्रवेश-द्वार के निकट ही दीवार पर चिड़ियों के तीन घोंसले स्थाई रूप से बने हुए दिखे। इनमें चिड़ियें आ-जा रही थीं । पूछने पर कर्मचारियों ने बताया कि प्रकृति-प्रेम के कारण यह व्यवस्था भवन की संरचना में ही कर दी गई है।

नौकुचिया ताल में शिकारे का आनंद
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सुबह हम लोगों ने भीमताल से सीधे चल कर रामपुर/मुरादाबाद आने के स्थान पर नौकुचिया ताल होते हुए लौटना पसंद किया। इस कार्य में घंटा-दो घंटे की देरी तो हो गई, लेकिन प्रकृति का जो चमत्कार झील के रूप में पहाड़ों पर उपस्थित है; उसके दर्शन एक बार फिर हो गए। नौकुचिया ताल में नावें भी चलती हैं तथा शिकारे भी चलते हैं। शिकारे शब्द हमने कश्मीर की झील के बारे में सुना था। नौकुचिया ताल के शिकारे में हम सभी बारह लोग एक साथ बैठ गए। झील का आधा भ्रमण हमें कराया गया।

बच्चों को भाई घुड़सवारी
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जब हम रामपुर के लिए कार में बैठकर चलने ही वाले थे, तो झील के तट पर सड़क पर दो घोड़ों की बागडोर थामे हुए उनके चालक हमें आते हुए दिखे। झटपट हमने बच्चों को घोड़ों पर बिठाया। चालकों के साथ-साथ हम भी चलते रहे। घुड़सवारी करके बच्चों को एक अतिरिक्त उपलब्धि पर्वतीय भ्रमण से प्राप्त हुई।

यात्रा बहुत आनंददायक तथा शांतिप्रद रही। यह बर्थडे हमेशा याद रहेगी।
—————————————
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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