शाम हो गई है अब हम क्या करें...
जल सिंधु नहीं तुम शब्द सिंधु हो।
वज़्न -- 2122 2122 212 अर्कान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन बह्र का नाम - बह्रे रमल मुसद्दस महज़ूफ
**बकरा बन पल मे मै हलाल हो गया**
*भीड़ में चलते रहे हम, भीड़ की रफ्तार से (हिंदी गजल)*
गुलाब
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
जब जब जिंदगी में अंधेरे आते हैं,
तड़के जब आँखें खुलीं, उपजा एक विचार।
वसन्त का स्वागत है vasant kaa swagat hai
क्या क्या बताए कितने सितम किए तुमने
ऐ माँ! मेरी मालिक हो तुम।
रिश्ते नातों के बोझ को उठाए फिरता हूॅ॑
मेरे प्रेम की सार्थकता को, सवालों में भटका जाती हैं।
23/86.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
जब से मेरे सपने हुए पराए, दर्द शब्दों में ढलने लगे,
गुरुकुल स्थापित हों अगर,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali