**भीगी भीगी सी शाम**
**भीगी भीगी सी शाम**
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हाथों में पकड़ा जाम है,
मुख से वो कहते राम है।
हर मजहब में होते अलग,
कुदरत के ही सब नाम है।
भक्तों के सारे काम पर,
हर पल लगता इल्जाम है।
हाला सा हो छाया नशा,
भीगी भीगी सी शाम हैं।
जन मानव यूँ तकरार कर,
क्यों हो जाता बदनाम है।
मनसीरत गिरते दाम पर,
बातें करना भी आम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)