भिन भिनौज (मार्मिक कविता)
भिन भिनौज।
आई अपने भैयारी मे कए रहल छी कटवा-कटौज
भ रहल छी अपने भैयारी मे भिन भिनौज
बाबू जी अनैत छलाह किछू नीक निकौत
त दुनू भाई करैत छलहूॅ खूम घोंघाउज।।
एक्के थारी में बैसी के खाइत छलहूॅ
मुदा एहेन बॅटवारा नहि देखल
ओ नहि हमरा देखैत अछि हम नहि ओकरा
कनेक नासमझीपन आब भिन भिनौज सेहो करेलक।।
बाबू जी केर मोन दुखित भेलैन केकरो आब आस नहि
ओ कहैत छै हम नहि देखबैए भैयाक पार छै
हम कहैत छियैक हम किया देखबैए छोटका के पार छै
मरै बेर मे आब बुरहबा के एक लोटा पानि देनिहार कियो ने।।
छोटकी पुतहू झॉउ झॉउ क रहल अछि
त सैझलियो कोनो दसा बॉकी नहि रखने अछि
ई कटवा कटौज आई अपने मे भए रहल अछि
एहेन भिन भिनौज देखि बुरहबा शोक संतापे मरि रहल अछि।।
झर झर बहि रहल अछि बुरहबाक ऑखि सॅ नोर
एसकरे कुहैर रहल छथि मुदा केकरा करताह सोर
सब किछू एक रंगे बॉटि देलाक बादो
पुतहू मुॅह चमकबैत अछि त बेटा खिसियाअैत अछि भोरे भोर।।
हमरा सुखचेन सॅ मरअ दियअ ने
सभ सॅ बुरहबा नेहोरा कए रहल छथि
मुदा जल्दी मरि जाउ घरक गारजीयन ई बुरहबा
सभ मिली हुनका गंगा लाभ करा रहल छथि।।
गंगा लाभ करैते मातर थरा थरा के मरि गेलाह
ओही दुनू कपूतक बाप ओ अभागल बुरहबा
ई सुनि आई किशन बहा रहल अछि नोर
कठियारी जेबाक लेल केकरा करत सोर।।
हाई रे आधुनिक बेटा पुतहू ई की
जीबैत जिनगी माए बापक सत्कार नहि करैत छी
मुदा हुनका मरलाक बाद ई की
पॉच गाम ल पूरी जिलेबीक भोज किएक करैत छी।।
केकरा सॅ कहू ओई बुरहबाक दुःख तकलीफ
अपटी खेत मे चलि गेल प्राण हुनकर
एहेन नहि देखल ई कटवा कटौज
कारीगर करैत अछि नेहारा नहि करू एहेन भिन भिनौज।।
लेखक:- किशन कारीगर ।
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