भीगे अरमाँ भीगी पलकें
भीगे अरमाँ भीगी पलकें
भीगा है मन बारिश में
भीगा आसमाँ भीगी धरती
भीगा है तन बारिश में
घनघोर घटाएं घिर घिर आएं
हर्षित मन को खूब लुभाएं
भीगे पात पुष्प और कलियाँ
भीगा गगन है बारिश में
टप-टप करती हैं बूंदें करतल
पंछी करें नीड़ में कल-कल
बहने लगे सब नदी और नाले
भीगा भवन है बारिश में
चारों और फैली है हरियाली
महक उठी हर डाली-डाली
तितली भंवरे मचल उठे सब
भीगा चमन है बारिश में
हर्षित मन सभी का है प्यासा
दिल में जगी एक अभिलाषा
“विनोद”पुकारे मीत को अपने
भीगा बदन है बारिश में
भीगे अरमाँ भीगी पलकें
भीगा है मन बारिश में
भीगा आसमाँ भीगी धरती
भीगा है तन बारिश में