भिखारिन
छुक छुक
चलती रेल
जैसे जीवन रेल
चलती भिखारिन
दीन दशा ऐसी
कहती हो वैसी
अब मैं आम से
आप कहलाऊगी
निर्भर दया पर
भाँति भाँति के मुसाफिर
जीवन की रेल
जाती किस ओर
पग पग माँगती
देखती ऐसे
जैसे हो चोर
अभागिन भिखारिन
नहीं भिखारिन
किसी की माँ भी
राजनीति की पहचान
सभ्यता का आयना
देश की माँ आहत
उसकी क्या कहानी
रोयेगी जो आँखें
उसकी क्या जवानी
डॉ मधु त्रिवेदी