भिक्षुक कि जिंदगानी
स्वान से बद्तर जिंदगानी मेरी,
क्या
सुन पाओगे कहानी मेरी?
तरसते हैं दाने – दाने के लिए हम,
अब क्या बताऊं कहानी अपनी??
घर – आंगन है फुटपाथ मेरा,
कीट-पतंगों रिस्तेदार मेरे,
दानी हैं ईश्वर मेरा,
बिमारी है मेरी दौलत,
गाली मेरी सौहरत है,
मन्दिर मस्जिद ना मेरे,
जहां भोजन मिला ,
वह देवालय मेरा,
होते कैसे वस्त्र नये?
फटे पुराने नसीब हमारे,
यह है कहानी हमारी,
सुन लो जिंदगानी मेरी||