भाषा प्रेमचंदी!
शीर्षक – भाषा प्रेमचंदी!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर,राज.
पिन 332027
मो. 9001321438
जीभ दंग रह जाती है हर बार
उच्चरित शब्द राख से ढेर हो
गूँज उठते है अक्षर निराकार
जो नहीं पा सके ध्वनि रूप ।
शाश्वत सत्य की कठोर तह भी
गर्दिश के लाल सितारें सी अचल
झिलमिल सा मिथ्या कोहरा
सत्य के आभास किनारे छूटे।
उलझी संवेदना के सौदागर
लपक रहे रोटी की थाली
भाषा प्रेमचंदी सी जानते है
कृत्य नक्सलवादी से है।