भाव
महादेव के चरणों में समर्पित…..
तुममें और मुझमें बस एक समानता है,
तुम भाव के भूखे हो और मैं भी….
माना के तुम्हारे भाव और मेरे भाव में
अंतर है जमीं – आसमां का….
पर शब्द तो एक है….
चलो बस शब्द को ही समान मान लो..
इससे भी तो एक समानता मिल जाएगी मुझे…..
अजीब फलसफा ये भी है के
ज़ब मैं ढूंढता हूँ तो तुम नहीं मिलते
ज़ब तुम….. तो मैं नहीं….
शायद ये भाव के ही कारण है….
मैंने ये कब नहीं माना के बस तुम ही मेरे हो…
बस तुम एक बार मान लो…. के मैं तुम्हारा हूँ…
यहाँ पर भी तो मशला भाव का है…
मैं महज भाव से तुम्हारा भाव लगा सकता हूँ…
ये बखूबी इल्म है मुझे……
बस मेरे भाव से अपने भाव को एक बार मिला दो….
फिर मैं मिल लूंगा तुमसे इसी भाव के बहाने….
मैं तुम्हे देख नहीं पाता… भला क्यों??
ये आँखें भी तो तुम्ही ने दी हैं….
शायद…………………………..
भाव से भरी आँखें ही दीदार कर सकती हैं तुम्हारा….
शिवाले में नजर आते हो एकदम शांत,
तुम्हारा भाव सदैव शांत नजर आता है
हो सकता है… यहाँ भी भाव की जरूरत है…तुम्हे चलायमान देखने के लिए
चलो एक बार सुन लो अरज मेरी भी..
नहीं बढ़ाना है भाव मेरा तो न बढ़ाओ
बस अपना बना लो……
बढ़ाकर भाव मेरा या घटाकर भाव अपना…….
-सिद्धार्थ गोरखपुरी