भावो का भूखा
मेरे लिए शबरी बन, झूठे बेर तो चुनलो तुम।
विधुरानी बनकर साग प्रेम का, तैयार अभी से करलो तुम।।
मैं भूखा हूँ बस भावों का, ये बात हृदय में धरलो तुम।
अब निश्छल होकर भाव प्रेम के, मुझ पर तो बरसादो तुम।।
तुम शिला बनी थी पत्थर की, उसमें जान फूंकने आया हूँ।
मैं भरे जगत में बस तेरी ही तो, रक्षा करने आया हूँ।।
तुम विश्वास तो मुझ पर कर लो ना, मैं कान्हा बनने आया हूँ।
मैं नहीं तुम्हारा ठाकुर हूँ, पर सेवक बनने आया हूँ।।
मैं आस तुम्हारी सांसों की, विश्वास मैं बने आया हूँ।
तुम आँख मूंद कर देखो तो, कुछ और भी तुमको दिखेगा।।
मैं चहूं और तुम्हारे जीवन में, मुस्कान बिखेरने आया हूँ।
मैं दास तुम्हारे चरणों का, यह बात बताने आया हूँ।।
तुम भूल न जाना जीवन में, यह बात बताने आया हूँ।
एक बार जो मुझको खो दोगे, फिर वापस मैं ना आऊंगा।।
यह बात बहुत ही छोटी हैं, पर यह बात बताने आया हूँ।
मैं तुम्हें अहिल्या जीवन से, मुक्ति दिलाने आया हूँ।।
मैं शबरी के उसे प्यार को पाने, फिर से धरा पर आया हूँ।
हे राधे प्यारी राजकुमारी, मैं सुशील कुमार बन आया हूँ।।
मैं तेरे जीवन में फिर से कान्हा बनने ही आया हूँ।
तुम सुरेश कुमारी मैं राजेंद्र कुमार, यह बात बताने आया हूँ।।
मैं नटखट तेरा बंशीधर हूँ, बस कान्हा बने आया हूँ।
मैं दिल में तेरे सदा रहूंगा, यह बात बताने आया हूँ।।
ललकार भारद्वाज