भावों की सरिता
सोचती हूँ जब भी,
जिंदगी के रास्तों के बारे में,
तो खुल जाता है यादों का पिटारा ।
बह जाती हूँ मैं सरिता की धारा सी ,
एक सुन्दर व सुहाने सफर के लिए ।
बचपन के रास्तों पर,
मिलती है केवल …
मुस्कानों की निर्मलता ,
चेहरों की स्वच्छता,
बचपन का भोलापन ,
खुशियों का असीमित भंडार,
चलता है मेरे साथ,
बस मेरे साथ।
फिर मैं चल पड़ती हूँ,
जवानी की यादों के रास्ते पर,
अब जिंदगी के हर उँचे नीचे रास्ते पर,
अपने किनारों को बचाती ,
चल पड़ती हूँ नई राह पर,
अध्यापन की ओर,
किसी बंज़र को सिंचित करने ,
किसी प्यासे को पानी पिलाने ,
अपने अध्यापन के माध्यम से,
ज्ञान की अलख जगाने ।
नहीं पता कैसा होगा आगे का सफर?
पर प्रयास ….
अथक ,अनवरत , बहना है मुझे…
हर उँचे -नीचे रास्ते को पार कर
बहना है मुझे …
ज्ञान से ज्ञान की जोत जला,
निरक्षरता के पहाड़ों को पार कर,
अपने प्रयासों से …
साक्षरता का प्रतिशत बढ़ाते हुए,
रास्ते की हर बाधा को पार कर,
मंजिल पाने को आगे बढ़ते जाना है ।
ज्ञान की सरिता की निर्मल धारा बन,
आगे-आगे बढ़ते जाना है।
नीरजा शर्मा