भावों का भोर जब मिलता है अक्षरों के मेल से
भावों का भोर जब मिलता है अक्षरों के मेल से
गढ़ता है पन्नों में खाली पड़े अंतराल को
समय का वेग जहाँ इंतजार लिये कतार में निर्विघ्न
पुछता है वर्तमान से
मिले क्या साक्ष्य ऐसे कर्म की शिला पर
जिसे कह सके स्याही की बुंद
हाँ प्राण से भरे शब्द हैं ये
“शब्द”
©️ दामिनी नारायण सिंह